जब पिता ICU में थे… Tata Consultancy Services ने सहानुभूति नहीं दिखाई, कर्मचारी को “स्वेच्छा इस्तीफा” देने पर मजबूर किया
भारत की प्रमुख आईटी कंपनी TCS के एक कर्मचारी का मामला अभी चर्चा में है — उस समय जब उसके पिता ICU में जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे, तब कंपनी ने उसे छुट्टी नहीं दी बल्कि इस्तीफ़ा लेने का दबाव बनाया।
उनके पास पर्याप्त लीव बैलेंस था, लेकिन कंपनी ने उन्हें छोड़ने पर मजबूर किया और बाद में ग्रेच्युइटी भी नहीं दी। अंततः श्रम कार्यालय ने आदेश दिया कि कंपनी को पूरे सात साल की सेवा के बदले पूरी ग्रेच्युइटी देनी होगी।
मामला: कैसे हुआ?
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कर्मचारी ने पिता की गंभीर बीमारी के कारण ICU में भर्ती होने पर आपातकालीन छुट्टी मांगी थी।
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हालांकि लीव बैलेंस पर्याप्त था, लेकिन कंपनी ने उसे “स्वेच्छा इस्तीफा” देने का दबाव दिया।
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कर्मचारी ने सात साल TCS में काम किया था, लेकिन सेवा के बदले ग्रेच्युइटी नहीं दी गई।
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इसके बाद टिप्पणीकर्ताओं और श्रम विभाग ने हस्तक्षेप किया और कंपनी को यह राशि देने का आदेश दिया गया।
क्यों महत्वपूर्ण है यह घटना?
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कर्मचारी स्वास्थ्य-संकट में भी सुरक्षित नहीं?
जब निजी जीवन में संकट हो — जैसे पिता ICU में हों — कंपनियों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। -
“स्वैच्छा इस्तीफा” बनाम दबाव में इस्तीफा
कानूनी दृष्टि से इस्तीफा तभी स्वैच्छिक माना जाएगा जब कर्मचारी की मर्जी से हो। लेकिन यहाँ उदाहरण है कि व्यक्ति को प्रतिष्ठित कंपनी में रहते हुए इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया गया। -
ग्रेच्युइटी जैसी कानूनी देनदारियाँ
भारत में जब कोई कर्मचारी पाँच या अधिक वर्ष सेवा करता है, तो उसे ग्रेच्युइटी का अधिकार होता है। इस मामले में यह अधिकार बाधित हो गया। -
आईटी सेक्टर में बढ़ती चिंता
इस घटना के साथ यह सवाल भी उठता है कि क्या बड़े आईटी ब्रांड्स कर्मचारियों को संकट-स्थिति में पर्याप्त समर्थन दे रहे हैं?
इस घटना से क्या सीख मिलती है?
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कर्मचारी हमेशा याद रखें: आपके पास अधिकार हैं — चाहे आप किसी बड़ी कंपनी में हों।
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यदि आपको लगता है कि आपकी कंपनी ने दबाव में छटनी या इस्तीफ़े का विकल्प दिया है, तो श्रृम विभाग/कार्यालय से संपर्क करें।
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कंपनी-नीति के मुकाबले कानून प्राथमिक है — ग्रेच्युइटी, छुट्टियाँ, इस्तीफा-प्रक्रिया आदि में।
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कंपनियों को अपने HR पॉलिसियों में मानव-केन्द्रित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए — संकट में कर्मचारी की मदद करना सिर्फ नैतिक नहीं, बल्कि दीर्घकालीन व्यावसायिक हित में है।
निष्कर्ष
यह मामला सिर्फ एक कर्मचारी और एक कंपनी का नहीं, बल्कि पूरे आईटी उद्योग के रुझानों को इंगित करता है। जब कंपनियाँ बड़े पैमाने पर री-स्ट्रक्चरिंग कर रही हों, तो ऐसे समय में कर्मचारियों के मानव-क्षेत्र की देखभाल और भी आवश्यक होती है।
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि महान ब्रांड नाम कर्मचारियों की निरंतर सुरक्षा और समर्थन की गारंटी नहीं हैं — उन्हें उस नाम के अनुरूप व्यवहार करना होगा।
और कर्मचारियों को यह समझना होगा कि आपके अधिकार आपके समर्थन नहीं बल्कि आपकी जागरूकता से सुरक्षित होते हैं।